प्रिय विद्यार्थियों,
माँ शारदा के इस पावन मन्दिर में विद्या की देवी की आराधना एवं शिक्षार्जन हेतु आप प्रवेश ले रहे है। मैं नूतन प्रवेशार्थी सभी विद्यार्थियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।
शिक्षा वह सतत् प्रक्रिया है जो आखर ज्ञान के साथ-साथ विद्यार्थियों में व्यवहार परिवर्तन भी लाती है। शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ सर्वप्रथम आपकी भावना शिक्षकों के प्रति सम्मानजनक एवं निष्ठावान होनी चाहिए। गुरूजनों से अधिकाधिक सम्पर्क स्थापित कर नियमित रूप से कक्षाओं में जाकर शिक्षार्जन करना ही आपका अभीष्ट होना चाहिए।
किसी भी संस्था का नाम उसके विद्यार्थियों की गतिविधियों पर निर्भर करता है। आप अपने कार्य व्यवहार एवं ज्ञान के प्रति समर्पित भाव से ऐसा कर दिखायें कि आपके बाद आने वाले सदैव आपके आदर्शों को ध्यान में रखें। इससे आपकी स्वयं की पहचान तो होगी ही साथ ही महाविद्यालय का नाम भी ऊँचा होगा। आपको शिखा के क्षेत्र में तो अग्रगामी होना ही है, अनुशासन, आज्ञापालन, संस्कृति की रक्षा, राष्ट्रसेवा, समर्पण, भाईचारे की भावनाओं का भी विकास करना है। आप राष्ट्र के. निर्मात्री है, समाज के कर्णधार है, इसलिये आपका समाज और राष्ट्र के प्रति विशेष दायित्व हैं संस्कृत में एक उक्ति है “विद्यां ददाति विनयं विनयददाति पात्रताम्” इसे सदैव आप अपना मूल निर्देशक सिद्धान्त मानें।
आशा है कि आप अपने व्यवहारागत जीवन को सौम्य, सुशील और सुसंस्कृत बनाकर महाविद्यालय की गरिमा और छवि को दर्पण की भाँति स्वच्छ रखेंगे।
मंगलमय भविष्य एवं सफलताओं की शुभकामनाओं सहित
प्राचार्य
डॉ. एन. के. कटारिया
शेखावाटी पी.जी. कॉलेज कांवट (सीकर)